हरियाणा लोक संगीत एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार में सूचना जन संपर्क एवं भाषा विभाग तथा हरियाणा कला परिषद् का योगदान

1नरेन्द्र कुमार (शोधार्थी)

डॉ॰ मुकेश (एसोसिएट प्रोफेसर, शोध निर्देशक)

संगीत विभाग, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा

1Email id- narenderbahamaniya@gmail.com

सारांश

हरियाणा का लोक संगीत परमपिता परमेश्वर से प्राप्त एक अनमोल उपहार है. यह हरियाणा प्रदेश के प्रत्येक जनमानस के हृदय में समाहित है. इस प्रदेश के विभिन्न लोक कलाकारों ने इसके स्वाभिमान को ऊँचा करने के लिए अपना समस्त जीवन लोक संगीत नामक धारा में प्रवाहित किया है. हरियाणा प्रदेश के लोक कलाकारों ने विभिन्न माध्यमों से इसके गौरव को चार चाँद लगाए हैं. इस प्रदेश की लोक संस्कृति एवं गीत संगीत के उत्थान में हरियाणा की अनेक राजकीय संस्थाओं ने अपना योगदान दिया है. जैसे- सूचना, जनसंपर्क एवम् भाषा विभाग, हरियाणा कला परिषद्, आकाशवाणी केन्द्रों, दूरदर्शन केन्द्रों आदि. इन उपरोक्त राजकीय संस्थानों में से सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग हरियाणा एवं हरियाणा कला परिषद ने विभिन्न लोक कलाकारों के माध्यम से हरियाणा के लोक संगीत एवम् संस्कृति का अत्यधिक प्रचार-प्रसार किया है. इन दोनों राजकीय संस्थानों ने लोक संगीत एवम् संस्कृति के संरक्षण हेतु विभिन्न कार्यक्रमों की रूपरेखा निश्चित की जिसके फलस्वरुप भिन्न-भिन्न कलाओं के कलाकारों को अपनी कला के माध्यम से इनको प्रचारित-प्रसारित करने के लिए कार्यभार सौंपे गए. इस पहल में हरियाणा के सभी प्रतिष्ठित कलाकारों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया तथा हरियाणा के लोक संगीत एवम् संस्कृति के प्रचारित-प्रसारित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.

की-वर्ड – लोक, संस्थान, संस्कृति, राजकीय, कला, विभाग.

परिचय:

हरियाणा भारत का एक समृद्धशाली प्रदेश है जो 44212 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बसा हुआ है जोकि सम्पूर्ण राष्ट्र के क्षेत्रफल का 1.34 प्रतिशत माना गया है.1 हरियाणा प्रदेश के संबंध में अनेक घटनाएँ भी दर्शाई गई है जिनका संबंध हरियाणा के नामकरण से है. उदाहरणतः हरि+आणा, अर्थात् हरि का आगमन. इस पंक्ति से तात्पर्य है कि भगवान श्रीकृष्ण ने हरियाणा में कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर आकर गीता का उपदेश दिया. एक अन्य उदाहरण के अनुसार हरियाणा का नाम हरियाली के प्रतीक से भी माना गया है. इसी धरा पर अनेक योद्धाओं, देवताओं एवम् वीर, वीरांगनाओं ने भी जन्म लिया है. यह प्रांत अनेक परम्पराओं, रीति-रिवाजों, समृद्धियों एवम् अनेकों कलाओं से ओत-प्रोत है.2

अवलोकन/विश्लेषण

हरियाणा का लोक संगीत एवं संस्कृति:

हरियाणा का मुख्य व्यवसाय कृषि है यह श्रमिकों, किसानों की कर्म भूमि है. यहां के किसान अधिक परिश्रमी हैं. हरियाणा का मुख्य कार्य कृषि होने के कारण भी यह सांस्कृतिक गतिविधियों से भरा हुआ है. इसकी सांस्कृतिक कार्यशैली को जीवन्त रूप देने का कार्य यहाँ का लोक संगीत करता है. यहां का किसान इतना परिश्रमी होने के बावजूद भी लोक संगीत का दिवाना है. क्योंकि इनको आकर्षित करने वाले यहां के सांग, गायन में लोक गाथाओं का जिक्र, भजनों के प्रति प्रेम, कथाएँ तथा अलग-अलग अवसरों पर होने वाला लोक गायन, वादन तथा नृत्य जो इसको अन्य सभी प्रदेशों से एक अलग पहचान दिलाता है. इसका प्रमुख कारण यहां के किसानों का अपने कार्य के प्रति  श्रमशील तथा कर्मशील होना है. अपने कार्य से हुई थकावट को उतारने के लिए यहां का किसान अपने लोकसंगीत का सहारा लेता है तथा अपने शरीर को तरोताजा व ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करता है.3

हरियाणा प्रदेश प्राचीन समय से ही भारत देश की संस्कृति, धार्मिक, रीति-रिवाज, परम्पराएँ, कलात्मकता अध्यात्म तथा साहित्य का पवित्र स्थल रहा है. सांस्कृतिक रूप से हरियाणा प्रांत का भूतकाल बेहद संपन्न तथा गौरव पूर्ण रहा है. महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ का रचना स्थल तथा भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता के उपदेश द्वारा ज्ञान की बहती हुई निर्मल धारा का प्रस्फूटन भी इसी प्रदेश में हुआ है. हरियाणा प्रांत प्राचीन समय से ही भारत की संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा है. किसी भी देश या प्रदेश की सभ्यता तथा संस्कृति उस प्रदेश का आईना होती है. मुख्य रूप से हरियाणा के लोक संगीत में निम्नलिखित गायन शैलियाँ प्रचलित है.

रागनी – हरियाणा की सांग परम्परा की शैलियों में रागनी सर्वाधिक प्रसिद्ध शैली है. रागनी के जनक हरियाणा के प्रसिद्ध सांगी पं॰ लख्मीचंद है. क्योंकि इन्हीं के माध्यम से रागनी गायन शैली को इतनी प्रसिद्धी प्राप्त हुई. वर्तमान समय में भी अन्य गायन शैलियों के बजाय रागनी गायन की शैली को आम जन सबसे ज्यादा पसंद करते हैं. किसी भी सांगी द्वारा रागनी को खुले गले के द्वारा पेश किया जाता है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है तथा लोक संगीत को सुनने वाले आम श्रोता गण झूम उठते हैं.4

आम जनमानस को आकर्षित करने तथा रागनी को प्रसिद्धि दिलाने के लिए सांगीयों के द्वारा कुछ अलग नाम रखे जाते है जिनमें मुख्य नाम है छाती छोल की रागनी, नींबू-निचोड़ की रागनी, माणसमार रागनी, ठेठ की रागनी, तोड़ की रागनी, रस टपकती रागनी, पापझाड़ रागनी आदि. रागनी के सबसे आगे वाले भाग को टेक कहा जाता है जो ज्यादातर दो लाइनों का होता है.

आल्हा- आल्हा-ऊदल में इनकी ऐतिहासिक युद्ध का वर्णन एक खास तरह की तर्ज/लय गूंथकर किया जाता है जो कि आल्हा कहलाता है. आल्हा गायन शैली को सुनकर आम श्रोता जोश से भर जाते हैं. आल्हा लोक प्रबंध की गायन विधाओं में एक  स्वतंत्र विधा है. इसके छंद तथा रंगत को आल्हा की रंगत के नाम से जाना जाता है. हरियाणा प्रदेश के सांगों में यह रंगत देखने को मिलती है.5

बहरे-तबील- पुरानी सांग परम्परा ही नही अपितु वर्तमान सांग परम्परा में भी इस गायन शैली का प्रयोग किया जाता है. पं॰ लख्मीचंद के काल में इस गायन शैली की शुरुआत सांगों में की गई. ’बहर’ तथा तबील के योग से बहरेतबील शब्द बना है. ’बहर’ का आशय लय/तर्ज से है तथा ’तबील’ तबले से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ नक्कारे से लिया गया है. नक्कारे पर पड़ने वाली चोट के साथ इसको गाया जाता है. इसकी धुन लम्बी होती है. इस शैली को मध्य सप्तक से तार सप्तक में अधिक गाया जाता है. बहरे तबील की पहली पंक्ति ऊँचे स्वर में खिंचकर के गाते हैं. अंतिम में नक्कारे की तर्ज बढ़ती जाती है तथा मन को लुभावने वाला संगीत पैदा होता है. बहरे-तबील में कथा के अलावा वीर रस का भी उत्तम स्वरुप प्रस्तुत किया जाता है. यह शैली नक्कारे के साथ 40 मात्रा में गाई जाने वाली शैली है.6

नसीरा: उत्तर प्रदेश में यह गायन शैली व्यवहार में आई. फिर हरियाणा प्रदेश के सांगीयों द्वारा इस शैली को सांगों में प्रयोग किया गया. जब दूसरों को नसीहत दी जाती है उस समय यह शैली गाई जाती है. इसी कारण इसको नसीरा कहा गया. इसके अतिरिक्त विवाह में जब शिठणे दिए जाते हैं उस वक्त भी इसका गायन होता है तथा रणभूमि में जाते समय सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए व भक्ति रस में भी इसका साहित्य मिलता है.7

सोहनी – सोहनी हरियाणा प्रदेश की एक प्रसिद्ध गायन शैली है. हरियाणवी लोक कलाकार इसको हरियाणवी राग की संज्ञा देते हैं. शादी के अवसर पर तथा दो व्यक्तियों के बिछड़ने पर भी इसका गायन किया जाता है. कन्या की शादी में फेरों के समय पर भी इस विधा को गाया जाता है.8

लोक नृत्य – संगीत के मुख्य तीन अंग माने गए हैं. चाहे वो लोक संगीत हो या फिर शास्त्रीय संगीत 1. गायन, 2. वादन, 3. नृत्य.

लोक नृत्य साधारण जनता के बहुत निकट है. इसी कारण से यह प्रदेश की सभ्यता तथा संस्कृति को भी दर्शाता है. हरियाणा के लोक संगीत में जितनी अहम भूमिका लोकगीतों की रही है उतनी ही भूमिका लोक नृत्य की भी है.

खुशी से झूमने पर मजबूर करने वाले उत्सव शिशु का जन्म, विवाह, मौसमी उत्सव, तीज तथा फसलों के पकने के समय जोश से भरकर लय गीत तथा ताल के सामंजस्य से अपनी मन की भावनाओं को शारीरिक अंग प्रदर्शन के माध्यम से लोक नृत्य को जन्म दिया. यहां के नृत्य में अलग-अलग विविधताएं देखने को मिलती है. इसका प्रमुख कारण हरियाणा प्रांत के साथ अन्य राज्यों के लोक संगीत का प्रभाव दिखाई देता है. कुछ राज्य हैं जैसे- राजस्थान, पंजाब तथा हिमाचल आदि. नृत्य में गायन तथा वादन का मनोहारी मेल दिखता है. हरियाणा प्रांत के मुख्य नृत्य धमाल, लूर, घूमर, फाग, गुग्गा, रासलीला, रसिया, खोडिया, खेड्डा तथा पूजा का गणगौर नृत्य आदि.

लोक वादन – वाद्यों की हरियाणा के लोक संगीत में अहम भूमिका रही है. वाद्यों के बिना लोक संगीत ऐसा है जैसे जल विहिन मछली अर्थात् वाद्यों के बिना लोक संगीत अधूरा है. गीत, नृत्य तथा नाटक आदि सभी कलाएं वादन के बिना असहाय हैं. श्रोताओं के लिए अधिक मनोरंजन बनाने के लिए नाटक के दृश्य में वादन का प्रयोग किया जाता है ताकि दृश्य को और अधिक प्रभावशाली ढ़ंग से पेश किया जा सके. बिना वाद्यों के अगर गीत गाया जाये तो नीरस सा लगता है. संगीत में वाद्यों की भूमिका प्राचीन काल से ही रही है. हरियाणवी लोक संगीत में वाद्यों का संगति के रूप में तो प्रयोग हुआ ही है बल्कि वाद्यों का एकल तथा सामूहिक वादन की भी परम्परा रही है. सारंगी का स्वतंत्र वादन तथा लहरे का वादन भी श्रोताओं का मनभावक है. सारंगी का वादन जोगी समुदाय के व्यक्ति करते हैं परन्तु वर्तमान समय में इसका प्रयोग कम होने लगा है. बाँसुरी तथा अलगोजा वाद्यों को बजाने का भी रिवाज रहा है. इन वाद्यों को ज्यादातर चरवाहे लोग अपने पशुओं को चराते हुए बजाते थे. हरियाणा की कुछ जगहों पर तासा तथा नगाड़े का स्वतंत्र वादन भी होता है. हरियाणवी लोक संगीत में प्रयुक्त होने वाले वाद्य निम्नलिखित है-

1. बैंजो, 2. घड़ा, 3. ढ़ोलक, 4. बाँसुरी, 5. तासा, 6. करताल, 7. इकतारा, 8. ढफली, 9. थाली, 10. मंजीरा, 11. दुतारा, 12. नगाड़ा, 13. सारंगी, 14. डेरु, 15. चिमटा, 16. ढोल, 17. नगाड़ी, 18. बीन, 19. ढफ, 20. रमझौल, 21. घुंघरु, 22. हारमोनियम आदि.

सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग का योगदान:

सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग जिसका पूर्व में नाम लोक संपर्क विभाग था. एक ऐसा विभाग है जो सूचनाओं तथा संगीत के माध्यम से लोगों को एक-दूसरे के संपर्क में लाता है. ये विभाग देश के प्रत्येक राज्य में खोले गए हैं व हर राजधानी में स्थापित है. इस विभाग का मुख्य उद्देश्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लागू करके संगीत का प्रचार तथा प्रसार करना है. सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग न केवल सभ्यता तथा संस्कृति का संरक्षण करता है बल्कि नए युवा कलाकारों के लिए जीविकोपार्जन में भी सहायता करता है. समाज में फैली हुई कुप्रथाओं को दूर करता है तथा लोगों को उनके प्रति जागरुक भी करता है जैसे लड़कियों को शिक्षा के प्रति, दहेज प्रथा, स्वास्थ्य की देखभाल, स्वच्छता अभियान, नशा बंदी व सरकार द्वारा चलाई जाने वाली लोगों के हितों की रक्षा करने वाली कल्याणकारी योजनाएं आदि. जिससे की आम जनमानस नई तकनीक व आधुनिक सोच के साथ आगे बढ़ सके. हरियाणा सरकार का सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग इसके लिए संगीत का सहारा लेता है. इस विभाग के अधिकारी तथा लोक कलाकार गायन, वादन तथा नृत्य के द्वारा यह कार्य करते हैं. गाँव-गाँव जाकर, स्कूल, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में अपनी सेवाएं देते हैं तथा अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. इसके लिए इस विभाग के कलाकारों को तय की गई आजीविका भी दी जाती है. संगीत की अलग-अलग विधाओं लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत व उपशास्त्रीय, सुगम संगीत की प्रतियोगिताएं भी इस विभाग द्वारा करवाई जाती है. हरियाणा राज्य के लोक कलाकार गायन, वादन व नृत्य के विभिन्न पदों पर तैनात होते हैं जो दूर-दराज के क्षेत्रों में जाकर सरकार द्वारा चलाए गए अभियानों का प्रचार व प्रसार संगीत के द्वारा करते है. लोक संपर्क विभाग की उपशाखाएँ भी हरियाणा प्रांत के प्रत्येक जिले में भी खोली गई है. नई युवा पिढ़ी को हमारी सभ्यता तथा संस्कृति के प्रति जागरूक करना भी इस विभाग का लक्ष्य है ताकि हमारी संस्कृति व संगीत का संरक्षण हो सके.9

हरियाणा कला परिषद का योगदान:

यह हरियाणा राज्य की एक प्रमुख राजकीय संस्था है जो प्रांत की अन्य सांस्कृतिक धरोहर के साथ-साथ संगीत कला व साहित्य का भी संरक्षण करती है तथा निरंतर संगीत कला व अपने प्रदेश की लोक शैलियों को संरक्षित करने का कार्य करती है तथा संगीत की विभिन्न प्रतियोगिताएँ जैसे लोक गायन शैलियाँ, शास्त्रीय तथा सुगम संगीत आदि  कार्यक्रम करवाती रहती है.

  1. हरियाणा कला परिषद मंच प्रदर्शन के द्वारा हरियाणा की संगीत कला, साहित्य तथा संस्कृति को बढ़ावा देती है.
  2. विभिन्न अकादमियों (हरियाणा साहित्य अकादमी हरियाणा इतिहास एवं संस्कृति अकादमी कुरुक्षेत्र) के द्वारा संगीत कला व संस्कृति के प्रचार तथा प्रसार को बढ़ावा देना. अन्य सांस्कृतिक संस्थानों तथा सरकार के साथ सौंहार्द पूर्ण संबंध स्थापित करना.
  3. इस परिषद के द्वारा राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगीत व सांस्कृतिक मंडलियों के द्वारा कला के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना जिससे अन्य राजकीय संस्थानों के साथ मजबूत संबंध बन सके.
  4. हरियाणा कला परिषद के द्वारा इसके कलाकारों को ईनाम व पुरष्कार दिये जाते हैं जो संगीत के प्रचार व प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. छात्रवृति, विशिष्टियां, भत्ते व आर्थिक सहायता आदि भी इस परिषद के द्वारा दी जाती हैं.
  5. हरियाणा कला परिषद संगीत के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देती है तथा कलाकारों को प्रेरित करने का कार्य करती है. इसके लिए आर्थिक सहायता के साथ-साथ शोध की खातिर नए पुस्तकालय भी स्थापित करती है.10

निष्कर्ष:

उपरोक्त शोध शीर्षक आधारित शोध पत्र के लेखन एवम् विभिन्न तथ्यों, साक्षात्कारों अथवा व्यक्तिगत अनुभवों, पुस्तकों, ग्रन्थों, पत्र-पत्रिकाओं एवं अन्य माध्यमों का विवेचन-अवलोकन करने के पश्चात् मैं अपने उपसंहार को अंकित करता हूँ कि हरियाणा के लोक संगीत एवम् संस्कृति को प्रचारित-प्रसारित करने में सूचना जनसंपर्क एवम् भाषा विभाग तथा हरियाणा कला परिषद नामक संस्थानों का अति महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इन दोनों संस्थाओं के माध्यम से हरियाणा की संस्कृति को नया जीवन प्राप्त हुआ है. इसमें केवल कलाकारों ही नही बल्कि आम जनमानस को भी अपने कर्तव्य, स्वतंत्रता, संस्कृति एवम् विभिन्न अधिकारों का ज्ञान हुआ है. ग्रामीण क्षेत्र की अधिकांशतः वह जनता जो अधिक पढ़ी लिखी ना होने के कारण सरकार की लिखित सूचनाओं को प्राप्त करने में असमर्थ होती है. उनको इन दोनों संस्थानों के लोक कलाकार गांव-गांव जाकर विभिन्न लोक कार्यक्रमों के माध्यम से इन सूचनाओं से अवगत कराते हैं. ये दोनों संस्थाएं आम जनता की भलाई एवम् उनके उद्देश्यों को पूरा करने में भरपूर प्रयत्न करती हैं. हरियाणा के जनमानस इन संस्थाओं के कलाकारों द्वारा जन हिताय उपदेशों को प्राप्त कर अनेक सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी बनते हैं. ये दोनों संस्थाएं अपने विभिन्न लोक कलाकारों के माध्यम से इस पद्धति से कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं कि हरियाणा की लोक जनता का मनोरंजन भी हो तथा सूचनाओं एवम् सरकारी संदेशों की प्राप्ति की जा सके जैसे- स्वच्छता अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, भ्रुण हत्या रोकथाम व पेड़ लगाओ, पेड़ बचाओ अभियान आदि. अतः ये समस्त योजनाएं लोक संगीत के माध्यम से प्रदान की जाती हैं. इन संस्थाओं के माध्यम से हरियाणा की लोक संस्कृति को जीवित रखने हेतु लोक कलाकारों को सांग प्रस्तुति हेतु प्रोत्साहन राशि भी प्रदान की जाती है जिसके फलस्वरुप ये लोक कलाकार बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं तथा अपनी कला के प्रति समर्पित रहते हैं. अतः हरियाणा के लोक संगीत और संस्कृति के उत्थानिकरण अथवा प्रचार-प्रसार में उपरोक्त दोनों संस्थाओं का अमूल्य योगदान है.